नदी के किनारे अपनी स्वेटर भूल के आ गया था,
वो लेकर आई थी तह कर के,
आज भी उसके मेहंदी लगे हाथों की महक
को महफूज़ रखा है
हमने अपनी आलमारी में,
उनकी उंगलियाँ जहाँ-जहाँ लगी थीं,
उस जगह का ऊन आज भी कुछ मुलायम है अब तक,
कुछ अलग ही सुकून देता है जब भी पहनता हूँ।
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