Sunday, April 24, 2011

Thoughts

1.Never take sumone for granted,always remember the way u r treating sumone,u can also be treated in the same way by sumbody.Feel the pain before it hurts.

2.I never lost ur lost,I have always gained a heap of strength by falling in love with u.

Mere aur Un k biche

अब मेरे और उनके बीच बातें करने
जैसा कुछ बचा ही नहीं था,
फ़कत ख़ामोशी रह गई थी हमारे दरमियान,
मिलते तो ज़रूर थे एक-दूसरे से
राहों पे चलते-चलते
लेकिन कहते कुछ नहीं थे,
कुछ रिश्तों की डोर से बँधे हुए थे शायद,
इसलिए एक-दूसरे को देखकर मुस्कुरा दिया करते थे.....

Tuesday, April 19, 2011

Zindagi

ज़िंदगी की राहों में चलते-चलते,
नन्हीं-नन्हीं हथेलियों में
ना जाने कब जीवन की डोर आ गई,
हमने भी पतंग की डोर समझ थाम कर
आसमान की ऊँचाइयों को छूने की कोशिश की,
उंगलियों से जब ख़ून निकला तब समझ आया,
ये पतंग की नहीं ज़िंदगी की कातिल डोर है
जो नन्हीं हथेलियों और मजबूत हाथों में फर्क नहीं करती...

Sanam

सनम ने हूमे मिलने उन की गलियों में बुलाया है,
हमअंधेरो में भटक ना जाए,
रोशनी क लिए चाँद को अपनी नज़रो से नहलाया है....

Idleness

Idleness comes in life to test the true character and temprament of a person,
How he can hold the burning desire for something to a particular moment of time.

Tuesday, April 5, 2011

sayari's by me....

तेरे हाथों के लिखे वो अध-जले खत ....
जिनका आखिरी पैगाम भी मैं पढ़ नहीं पाया
उनका पूरा जलना बाकी था.....
ऐसे तो तेरी बहुत तस्वीरें बहा चुका था..
आंखों में बसी हुई.. तेरी तस्वीर को आंसुओं से बहाना बाकी था.....
कहीं न कहीं लगता है... खत्म हो के भी खत्म न हो पाया..
वो तेरा मेरा रिश्ता बाकी था....

कोई शिकायत न कोई उम्मीद तुमसे रहेगी ...
ना तुम मुझे वो प्यार दे पाई जिस काबिल मैं था...
ना तुम वो प्यार समझ पाई जिसे पे तुम्हारा हक़ था...
बस एक यही टीस उम्र भर रहेगी.....

कुछ उलझे हुए ख़याल हैं,
कुछ बिखरी हुई ज़िंदगी,
थोड़ी ठहरी रुकी भी है.....
पर लगता है जैसे हर ठहराव
हर पड़ाव अंदेशा लिए हुए,
कुछ नए रस्तों का... नई मंज़िलों का...

हर सहर हर गली की खाक छान मारी...
पर उनका कुछ पता न मिला,
तन्हाई में तकरार करते रहे...
वो ख्वाबों में आकर बोले.....
दिल में बसने वालों के पते हुआ नहीं करते....

meri likhi hui kuch nazamein hai.....

काश तुम कभी इस सागर जैसी गहराई वाले दिल का मंथन कर पाती,
इस सीने में दबे हुए अमृत कलश को निकाल पाती,
लेकिन तुमसे निकला भी तो विष का प्याला,
जिसने एक बनते हुए आशियाने को उजाड़ डाला......

मेरी और तुम्हारी वो मुलाकात,
जो आखिरी बन के रह गई,
तुम्हारी बोलती आँखों की ख़ामोशी
जाने कैसे तुम्हारा हाल-ए-दिल बयां कर गई,
बंद होंठों से जुदाई का वो दर्द जाने तुम कैसे कह गई,
अब तक हैरान हूँ मैंने इतनी बड़ी बेवफ़ाई इतनी वफ़ा से तुम कैसे कर गई.....

हर शाम मयकदे में तेरे नाम एक जाम होता है,
हाथों से झटक़ न जाए, लबों से थामा होता है........
तू कहीं बेवफ़ा के नाम से मशहूर न हो जाए......
इसलिए ये दीवाना रोज़ शराबी के नाम से बदनाम होता है.....

एक अक्स

एक अक्स है भीड़ में तन्हाई में जिसे ढूंढता हूँ,

जाने क्यों अब महरूम हूँ जिसे से.....

मिलेगा या नहीं ये भी नहीं जानता हूँ...

बस एक तलाश है......

लगता है बहुत पहले बड़ा करीब था अब क्यों जुदा है ये जानता नहीं....

कब बिछड़े थे ये भी कुछ धुंधला सा है....

आज जब पलट के देखा तो वो गुमशुदा था......

जिसके हर पल मेरे साथ होने का यकीन था मुझको.....

गहराई से सोचा तो समझ आया मेरा वजूद मुझसे खफा है....

खुद से खुद को पाने की ये जुस्तजू है.....आरज़ू है...