Date 25/03/2018
एक इंतज़ार था जो अब मायूस था , एक दिल था जो बिखरा था टुटा था , एक वजूद था जो अपना अस्तित्व खो चूका था, तेरा वजूद बनाते बनाते ।
एक दिल था जो तुझसे उस मोहबत की भीक मांग रहा था , जो मोहबत तू उसे कभी दे ही नहीं सकती । तेरे इश्क़ में एक खयाली दुनिया को हक़ीक़त मान लिया था ।
पर अब लगता है जैसे किसी गहरी नींद से जागा हूँ । खुद के सवालों के जवाब भी ठीक से दे नहीं पा रहा हूँ ।
मोहबत की थी, पर ज़िल्लत नसीब हुई । तुझे हँसाते हँसाते मैं खून के आँशु रो लिया ।
पर अब जो उठा हूँ तो खुद को मजबूति से खड़ा करने के लिए । ये नहीं की अब तुझसे मोहबत नही , पर अब खुद से ज्यादा रहेगी ।
जो मेरा वजूद बिखरा हुआ है , जो मेरा अस्तित्व झंझोड़ा हुआ है , उस को फिर से समेटूंगा । अब तक लड़ता रहा तेरे लिए, अब खुद के लिए एक लड़ाई लड़ूंगा ।
फिर एक बार खुद को साबित करूँगा । बहुत बार हुआ है ये किस्सा , अब अपना एक किस्सा लिखूंगा ।
तू एक ऐसी मंज़िल थी , जो मेरे मुक़द्दर में नहीं थी । मैं कभी तुझे गलत कहूँगा नहीं, कभी गलत समझूँगा नहीं ।
तेरी मोहबत ने एक नयी सोच ,नया नजरिया दिया ज़िन्दगी को,खुद को फिर से जान लेने का, एक नया मोड़ देने का ।
ये सब तुझसे कभी कहूँगा नहीं ,पर खुद से कह दिया है । अब बेहतर है मेरा रास्ता भी मेरी मंज़िल् की तरह तुमसे अलग हो जाये ।
तुम्हारा रास्ता तुम्हारी मंज़िल तो पहले से ही तय थी , मैं ही रास्ता भटक गया था ।
अपना हाल ऐ दिल जाहीर करने और लिखने से पहले भी जानता था की ये सब बेमानी है ,पर खुश था की एक दबी हुई, छुपी हुई मोहबत को जुबान मिल रही है ।
दिल जो लगता था की पत्थर हो गया है,मिट्टी हट गयी ,अब सीने में धड़कता भी है ।
तेरे इश्क़ से एक नयी हिम्मत मिली की अब बिखारूँगा नहीं, टूटउंगा भी नहीं ।
वही पुराने जोश और जज़्बे से फिर ज़िन्दगी को सलाम कर के, अपनी आखिरी सांस तक लड़ाई लड़ता रहूँगा ।
एक इंतज़ार था जो अब मायूस था , एक दिल था जो बिखरा था टुटा था , एक वजूद था जो अपना अस्तित्व खो चूका था, तेरा वजूद बनाते बनाते ।
एक दिल था जो तुझसे उस मोहबत की भीक मांग रहा था , जो मोहबत तू उसे कभी दे ही नहीं सकती । तेरे इश्क़ में एक खयाली दुनिया को हक़ीक़त मान लिया था ।
पर अब लगता है जैसे किसी गहरी नींद से जागा हूँ । खुद के सवालों के जवाब भी ठीक से दे नहीं पा रहा हूँ ।
मोहबत की थी, पर ज़िल्लत नसीब हुई । तुझे हँसाते हँसाते मैं खून के आँशु रो लिया ।
पर अब जो उठा हूँ तो खुद को मजबूति से खड़ा करने के लिए । ये नहीं की अब तुझसे मोहबत नही , पर अब खुद से ज्यादा रहेगी ।
जो मेरा वजूद बिखरा हुआ है , जो मेरा अस्तित्व झंझोड़ा हुआ है , उस को फिर से समेटूंगा । अब तक लड़ता रहा तेरे लिए, अब खुद के लिए एक लड़ाई लड़ूंगा ।
फिर एक बार खुद को साबित करूँगा । बहुत बार हुआ है ये किस्सा , अब अपना एक किस्सा लिखूंगा ।
तू एक ऐसी मंज़िल थी , जो मेरे मुक़द्दर में नहीं थी । मैं कभी तुझे गलत कहूँगा नहीं, कभी गलत समझूँगा नहीं ।
तेरी मोहबत ने एक नयी सोच ,नया नजरिया दिया ज़िन्दगी को,खुद को फिर से जान लेने का, एक नया मोड़ देने का ।
ये सब तुझसे कभी कहूँगा नहीं ,पर खुद से कह दिया है । अब बेहतर है मेरा रास्ता भी मेरी मंज़िल् की तरह तुमसे अलग हो जाये ।
तुम्हारा रास्ता तुम्हारी मंज़िल तो पहले से ही तय थी , मैं ही रास्ता भटक गया था ।
अपना हाल ऐ दिल जाहीर करने और लिखने से पहले भी जानता था की ये सब बेमानी है ,पर खुश था की एक दबी हुई, छुपी हुई मोहबत को जुबान मिल रही है ।
दिल जो लगता था की पत्थर हो गया है,मिट्टी हट गयी ,अब सीने में धड़कता भी है ।
तेरे इश्क़ से एक नयी हिम्मत मिली की अब बिखारूँगा नहीं, टूटउंगा भी नहीं ।
वही पुराने जोश और जज़्बे से फिर ज़िन्दगी को सलाम कर के, अपनी आखिरी सांस तक लड़ाई लड़ता रहूँगा ।
No comments:
Post a Comment