आज उस सड़क पर मैं फिर तनहा हूँ,
जहाँ मैं और तुम रोज आँखों से मिला करते थे।
हर दफ़ा वादे किए थे तुमसे ऐसे ही हर दम साथ चलूंगा,
जाने क्यों फिर मेरी टूटती हिम्मत,
और तुम्हारी फिक्र ने पीछे हटने पर मजबूर कर दिया।
तुम किसी और से सात जनमों के बंधन में बंध गई,
और मैं अपने किए हुए हर वादे पर अपनी नज़रों से गिरता गया।
उस समय बाकी सब की ख़ुशी के लिए अपनी ख़ुशी की आहुति दे दी,
अब अकेला हूँ तुम्हारी यादों में..रूटता हूँ बिलखता हूँ।
हर कोई अब भी खुश है सिवाय मेरे..
किसी को कोई वास्ता नहीं है मेरे सुख और दुख से,
ख़ुद के कंधों पर लिए चलता हूँ अपने अरमानों की लाश,
उस सी सड़क पर जहाँ हम तुम अपनी नज़रों से मिला करते थे।
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