Monday, October 31, 2011

कुछ पुरानी किताब

कुछ पुरानी किताब कॉपियाँ हैं जहाँ
उन्होंने अपने हाथों से कुछ लिखा था,
आज भी स्याही कुछ गीली है,
जब भी याद कर के उन पर अपनी उंगली घुमाता हूँ,
हाथों में लग जाती है,
देर तक उस स्याही का रंग हाथों से छूटता नहीं है,
बरसों पहले किसी ज़माने में प्यार हुआ था उनसे,
अब तो इबादत लगती है मोहब्बत।

नदी के किनारे

नदी के किनारे अपनी स्वेटर भूल के आ गया था,
वो लेकर आई थी तह कर के,
आज भी उसके मेहंदी लगे हाथों की महक
को महफूज़ रखा है
हमने अपनी आलमारी में,
उनकी उंगलियाँ जहाँ-जहाँ लगी थीं,
उस जगह का ऊन आज भी कुछ मुलायम है अब तक,
कुछ अलग ही सुकून देता है जब भी पहनता हूँ।