तुमसे कभी कहा नहीं लेकिन तुम्हारे लिए सिंदूर ले आया था माता के दरबार से
सुनार से एक मंगलसूत्र बनवा लिया था तुम्हरे लिए अपनी पहली तनखा से
आज भी तुम्हारी ये सारी अमानत संभल के रखी है अपने पास
जब सात जनमो की कसम की कोई समझ भी नहीं थी शायद उस समय से ही तुमको अपना मान लिया था
धर्मपत्नी आर्धन्गिनी इन शब्दों के अर्थ से परे था मेरा रिश्ता तुम्हारे लिए
तुमने सात फेरे तो किसी और के साथ लिए थे लेकिन उन सात फेरो में मन ही मन मैं तुम से बंध गया था
मैं आज भी उन कसमो को निभा रहा हूँ तुम्हारे हर दुःख के लिए अपनी ख़ुशी त्याग रहा हूँ
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सब समझते है मैं ज़िन्दगी से बहुत कुछ चाहता हूँ
पर दिल ही दिल में मैं ये जानता हूँ
मैं ज़िन्दगी से सिर्फ तुम्हे मांगता हूँ
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हर ख्याल में ख्याल आप है
हर बात में बात आप है
हर रात की नींद में ख्वाब आप है
हर दिन की सुबह में सूरत आप है
हर ग़ज़ल की पंक्ति आप है
हर सोच की सोच आप है
हर इश्क का कलमा आप है
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