Wednesday, December 14, 2016

मैं आज भी उन कसमो को निभा रहा हूँ तुम्हारे हर दुःख के लिए अपनी ख़ुशी त्याग रहा हूँ 


तुमसे कभी कहा नहीं लेकिन तुम्हारे लिए सिंदूर ले आया था माता के दरबार से 
सुनार से एक मंगलसूत्र बनवा लिया था तुम्हरे लिए अपनी पहली तनखा से 
आज भी तुम्हारी ये सारी अमानत संभल के रखी है अपने पास 
जब सात जनमो की कसम की कोई समझ भी नहीं थी शायद उस समय से ही तुमको अपना मान लिया था 
धर्मपत्नी आर्धन्गिनी इन शब्दों के अर्थ से परे था मेरा रिश्ता तुम्हारे लिए 
तुमने सात फेरे तो किसी और के साथ लिए थे लेकिन उन सात फेरो में मन ही मन मैं तुम से बंध गया था
मैं आज भी उन कसमो को निभा रहा हूँ तुम्हारे हर दुःख के लिए अपनी ख़ुशी त्याग रहा हूँ 

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सब समझते है मैं ज़िन्दगी से बहुत कुछ चाहता हूँ 
पर दिल ही दिल में मैं ये जानता हूँ 
मैं ज़िन्दगी से सिर्फ तुम्हे मांगता हूँ 

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हर ख्याल में ख्याल आप है 
हर बात में बात आप है 
हर रात की नींद में ख्वाब आप है 
हर दिन की सुबह में सूरत आप है 
हर ग़ज़ल की पंक्ति आप है 
हर सोच की सोच आप है 
हर इश्क का कलमा आप है 


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