अब वक़्त आ गया था एक नए मुसाफिरखाने की तलाश का
तेरे बगैर घर तो जिस को कह नहीं सकते पर शायद दो पल मिल जाये जहाँ सुकून के
तुझ से जुदा तो नहीं पर तुझ से अलग हो के खुद को समझ सकू खुद को संभाल सकू
क्यूँ इतना बिखरा बिखरा भटकता रहता हूँ इस सवाल का जवाब पा सकू
अब मन भी कहता है बहुत हो चूका इस जगह का दाना पानी
किसी नयी जगह चलते है जन्हा कोई न हो जाना पहचाना
हर एक चेहरा हो अंजना सा
अब तक तो हर चेहरे में तुम्हारा ही चेहरा देखा था
पर अब अनजान चेहरों में तुमसे अलग अपना कोई चेहरा देख पाऊ
जो बिखरी बिगड़ी हुई सी ज़िन्दगी है मेरी
उस को एक नए सिरे से फिर एक डोर में पिरो सकू
तेरा इंतज़ार कामयाब हुआ या नाकामयाब ये तो नहीं कह सकता
पर हाँ कोशिश यही है अपनी ज़िन्दगी को कामयाबी की एक नयी मिसाल बना सकू
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