तुम जिस प्रताड़ना से गुजरी
उस का कुछ रति भर दुःख मैंने महसूस किया
बहुत स्वार्थी था मैं जो तुम से अलग हो के सिर्फ अपने बारें में ही सोचता रहा
कभी तुम्हारे दृष्टिकोण से उस चीज़ को नहीं दिख पाया
मुझे तो सिर्फ तुम से जुदा होने का गम रहा
पर तुम ने जो सहा तुम जिस दौर से गुज़री
अपनी आंधी मोह्बत की सड़को पर दौड़ते दौड़ते कभी उस जगह ठहर नहीं पाया
कहने को तुम्हारे बैगर बुरा समय मैंने भी देखा
पर वो तुम्हारे बुरे समय के आगे न के बराबर थे
तुम अगर नरक में जल रही थी तो मैं नरक के द्वार पर खड़ा था
यूँ तो ये मेरी इक तरफा मोहबत है पर मोहबत के उसूल जिस में सब से पहले तुम्हारी ख़ुशी आती है
उस उसूल में बंधा हुआ हूँ मैं , बस उसी मोहबत के वास्ते तुम से ये कहना ये चाहता हूँ
तुम्हारी एक हंसी के लिए आज भी दुआए होती है
हो सके तो पुराना समय भूल के खिलखिला के मुस्कुरा दो
तुम को हँसता मुस्कुराता देख शायद मैं कुछ राहत महसूस कर सकू
No comments:
Post a Comment